Bangalore University Caste Discrimination: दलित प्रोफेसरों ने किया इस्तीफे का ऐलान, लगाए गंभीर आरोप!

प्रशासनिक पदों पर भेदभाव और सेवाओं के लाभ रोके जाने से नाराज 10 दलित प्रोफेसरों ने कुलपति को पत्र लिखकर एक सप्ताह में कार्रवाई की मांग की।




Bangalore University Caste Discrimination: दलित प्रोफेसरों ने किया इस्तीफे का ऐलान, लगाए गंभीर आरोप!


बंगलूरू : बंगलूरू विश्वविद्यालय में अहम प्रशासनिक पदों पर कार्यरत दलित फैकल्टी सदस्यों के एक समूह ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर जाति आधारित भेदभाव का आरोप लगाते हुए अपने पदों से इस्तीफा देने की चेतावनी दी है।


2 जुलाई को कुलपति प्रो. डॉ. जयकारा शेट्टी को लिखे पत्र में 10 प्रोफेसरों ने आरोप लगाया कि वर्षों से प्रशासनिक जिम्मेदारियां निभाने के बावजूद उन्हें विश्वविद्यालय में वैधानिक पदों पर नियुक्त नहीं किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि उन्हें केवल “देखरेख” (सुपरवाइजरी) भूमिकाओं में रखा जा रहा है जिनमें न तो पूरा अधिकार है और न ही मान्यता।


उन्होंने इसे दलित फैकल्टी के खिलाफ “भेदभावपूर्ण नीति” करार दिया। पत्र में उन्होंने यह भी कहा कि पहले विश्वविद्यालय प्रशासन उन्हें प्रशासनिक कार्य के लिए अर्जित अवकाश (Earned Leave – EL) नकदीकरण या अन्य मुआवजा देता था, जिसे अब बिना किसी स्पष्टीकरण के रोक दिया गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि इस मुद्दे पर बार-बार की गई शिकायतों और निवेदनों के बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की।


फैकल्टी सदस्यों ने चेतावनी दी कि यदि पत्र दिए जाने की तारीख से एक सप्ताह के भीतर उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे अपने प्रशासनिक पदों से इस्तीफा दे देंगे।


पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले प्रोफेसर हैं:

  • प्रो. सोमशेखर सी, निदेशक, अंबेडकर रिसर्च सेंटर

  • प्रो. विजयकुमार एच. डोड्डमणि, निदेशक, बाबू जगजीवन राम रिसर्च सेंटर

  • प्रो. नागेश पी. सी., निदेशक, छात्र कल्याण

  • प्रो. कृष्णमूर्ति जी., विशेष अधिकारी, अनुसूचित जाति और जनजाति प्रकोष्ठ

  • प्रो. सुधेश वी., समन्वयक, पीएम-उषा

  • प्रो. मुरलीधर बी. एल., निदेशक, डिस्टेंस और ऑनलाइन एजुकेशन सेंटर

  • प्रो. शशिधर एम., निदेशक, मालवीय टीचर्स ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट

  • प्रो. रमेश, निदेशक, प्रसारण

  • डॉ. सुरेश आर., निदेशक, इक्वल अपॉर्च्युनिटी सेल

  • डॉ. कुम्बिनरसैया एस., निदेशक, बीओएल सेंटर


इन फैकल्टी सदस्यों ने कहा कि उनका यह सामूहिक कदम केवल व्यक्तिगत शिकायतों को लेकर नहीं है, बल्कि यह “व्यवस्थित बहिष्कार और वैध लाभों से वंचित करने” के खिलाफ विरोध है। एक प्रोफेसर ने द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा, “हमें इन वैधानिक पदों का पूरा चार्ज नहीं दिया गया है और अर्जित अवकाश का लाभ भी नहीं मिल रहा, जबकि हम बिना किसी इनाम के अपना समय दे रहे हैं। यह दलित प्रोफेसरों को हाशिए पर डालने की सुनियोजित कोशिश है। बार-बार लिखने के बावजूद कोई जवाब नहीं मिला।”


मीडिया समूह के पास उपलब्ध एक विश्वविद्यालय के आधिकारिक संचार में कहा गया है कि विश्वविद्यालय उन फैकल्टी सदस्यों की भूमिका को मान्यता देता है जो समन्वयक, निदेशक, विशेष अधिकारी, मुख्य वार्डन और अध्ययन केंद्रों के अध्यक्ष के रूप में महत्वपूर्ण प्रशासनिक जिम्मेदारियां निभा रहे हैं। विश्वविद्यालय ने कहा कि ये भूमिकाएं “अत्यावश्यक सेवाओं” के रूप में मानी जाती हैं और उनके विभागों और केंद्रों के संचालन के लिए वे समान रूप से जवाबदेह हैं।


हालांकि, विश्वविद्यालय ने स्पष्ट किया कि कुछ विभागों में “हेड” (अध्यक्ष) पद आधिकारिक रूप से स्वीकृत नहीं हैं क्योंकि वहां उपयुक्त उपनियम (बाइलॉज) नहीं बने हैं। ऐसी जगहों पर फिलहाल समन्वयक अधिकारियों की सेवाएं ली जा रही हैं। विश्वविद्यालय ने कहा कि वह मौजूदा उपनियमों में संशोधन कर ऐसे पदों की औपचारिक नियुक्ति का प्रावधान करेगा।


संचार में यह भी कहा गया, “एक बार ये संशोधन स्वीकृत हो जाएं तो विश्वविद्यालय उन समन्वयक अधिकारियों को अर्जित अवकाश (EL) और अन्य लागू मुआवजा देने की प्रक्रिया शुरू करेगा, जो वर्तमान में विभागों में स्वीकृत ‘हेड’ पद न होने के बावजूद अतिरिक्त जिम्मेदारियां निभा रहे हैं।”


यह भी पढ़ें- Ashva Rog Mukt Compartment: मेरठ में देश का पहला अश्व रोग मुक्त कम्पार्टमेंट, विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन से मान्यता


यह भी पढ़ें- New Pocket-sized Sensor: भारतीय वैज्ञानिकों ने बनाया ऐसा सस्ता सेंसर जो दिखाएगा जहरीली गैस का हर इशारा!


यह भी पढ़ें- Basti School Girl Reels: बस्ती के बंद स्कूलों में रील्स बनाने का ट्रेंड, वायरल वीडियो ने मचाई हड़कंप